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ऑल द बेस्ट मॉ

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हिन्दी कविता में पहाड़ के दर्द को दर्ज करने वाले कवियों के बीच रेखा चमोली की रचनाओं में पहाड़ की स्त्रियों के जीवन के अनेकों चित्र देखें जा सकते हैं। स्त्री विमर्श के व्यापक दायरे में उनके संकेत, बहुत सीमित लेकिन लगातार के सामाजिक बदलावों में अपने व्यवहार को बदलते पुरूष के प्रति स्त्री मन की स्वीकरोकित के साथ हैं। सीधे वार करने की बजाय दोस्ताना असहमतियों में अपने साथी पुरूष को उन सामंती प्रवृत्तियों से मुक्त होने का अवसर देते हुए, जो हजारों सालों की परम्परा में पुरूष प्रकृति में ऐसे समाया हुआ होता है कि प्रगतिशील होने की चाह रखता कोई भी पुरूष कभी भी जिसकी जद में देखा जा सकता है। पुरूष मन के भीतर जाकर लिखी गयी कविता ताना-बाना अपने ऐसे कथ्य के कारण महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रस्तुत है रेखा की नयी कविताऐं।
 यूं अभिव्यक्ति का कच्चापन रेखा की कविताओं को किसी खास वैचारिक दायरे की बजाय मासूमियत भरा है। विमर्श की प्रकिया में रचनात्मक कमजोरी के इस बिन्दु से रेखा को लगातार टकराना चाहिए ताकि विचार की परिपक्वता में कविताओं के दायरे विस्तार पायें।
वि.गौ.

ताना-बाना                            


किसी जुलाहे के ताने-बाने से कम नहीं
उसके तानों का जाल
जिसमें न जाने कैसी-कैसी
मासूम चाहतें
पाली हैं उसने  
कभी एक फूल के लिए महकती
तो कभी
धुर  घुमक्कड बनने को मचलती
रोकना-टोकना सब बेकार
ऐसा नहीं कि
मेरा मन नहीं पढ़ पाती
बनती जान बूझकर अनजान
कभी नींद में भी सुलझाना चाहूॅं
उसके तानो का जाल तो
खींचते ही एक धागा
बाकि सब बजने लगते सितार से
हो जाती सुबह
धागा हाथ में लिए
उसके कई तानों का
मुझसे कोई सरोकार नहीं
जानकर भी
मन भर-भर तानें देती
तानेबाज कहीं की

उसके तानों के पीछे छिपी बेबसी
निरूत्तर कर देती
तो कोई शरारत भरा ताना
महका जाता तन-मन
जब कभी
मस्त पहाड़न मिर्ची सा तीखा छोंका पड़ता
उस दिन की तो कुछ ना पूछिए
और जब
कई दिनों तक
नहीं देती वो कोई ताना
डर जाता हूॅ
कहीं मेरे उसके बीच बने ताने-बाने का
कोई धागा ढीला तो नहीं हो गया।                  


नींद


एक सुकून भरी नींद चाहिए
जिसमें ना हो
कोई सपना
प्रश्न
द्धन्द
चीख
खून
ऑसू
दुख
बीमारी
जन्म-मृत्यु
यहॉ तक कि
हॅसी-खुशी
यादें
भविष्य के लिए योजनाऍ
भी ना हों
बस एक शांत नींद चाहिए।



चाहना


चाहना कि
प्रेम के बदले मिले प्रेम
स्नेह के बदले सम्मान
मीठे बोलों के बदले आत्मीयता
तार्किक बातों के बदले वैचारिक चर्चाऍ
मिट जाएं समस्याऍ
सॅवर जॉए काम
आसान नहीं
बदलाव के लिए
और भी बहुत कुछ करना होता है
चाहने के साथ।


कसूर


कपडे-मेकअप
चाल-ढाल
खान-पान
रहन-सहन
उठना-बैठना
शक्ल-सूरत
रंग-ढंग
सब हमारा दोष
तुम तो बस
अपनी कुंठाओं से परेशान
उसे यहॉ-वहॉ उतारने को आतुर
तुम्हारा क्या कसूर ?


ऑल द बेस्ट मॉ


घर -गृहस्थी, नौकरी
पचासों तरह की हबड-तबड के बीच
मॉ को कहॉ समय
देख पढ ले किताबें
मॉ के काम
मानों दन्त कथा के अमर फूल
जितने झरते उससे कई गुना खिलते
पलक झपकाने भर आराम के बीच
किताबें तकिया बन जाती
बुद्ध न बन पाने की सीमाओं के बाबजूद
मैत्रेयी और गार्गी बची रह गयीं
मन के किसी कोने में
इसीलिए
मनचाहा विषय ना मिलने पर भी
मॉ नहीं घबरायी
अब तक मनचाहा मिला ही कितना था ?
तो , मुझे अच्छा लगेगा कहकर
मॉ ने जता दिया
इसबार कोई उसे रोक नहीं पाएगा
आज मॉ निकली है
बेहद हडबडी में
परीक्षा देने
वैसे ही जैसे
रोजमर्रा के अनगिनत मोर्चों पर निकल पडती है
अकेली ही
ऑल द बेस्ट मॉ।


ड्राइवर


मत चलाओ
इतनी तेज गाड़ी
ये पहाड़ी रास्ते
गहरी घाटियों में बहती तेज नदी
जंगल जले हुए
लुढ़क सकता कोई पत्थर
जला पेड़
मोड़ पर अचानक

तेज बरसात से
बारूदी बिस्फोटों से
चोटिल हैं पहाड़
संभल कर चलो
गाड-गदने अपना
पूरा दम खम दिखा रहे

ड्राइवर
मत बिठाओ
इतनी सवारी
शराब पीकर गाड़ी मत चलाओ
फोन पर बात फिर कर लेना

कुछ दिन पहले
देखा तुम्हें
कॉलेज आते-जाते
कहाँ सीखी ये हवा से बातें करना?

ऐसा भी क्या रोमांच?
जो गैरजिम्मेदार बना दे

मेरे घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं
तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?







रेखा चमोली
जोशियाडा
 उत्तरकाशी ,उत्त्ाराखण्ड
मो 9411576387





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